मैं मायूस हुआ जाता हूं, तुम हंसाओ मुझको,
तलब़गार हूं तुम्हारा, पता तो बताओ मुझको ।

ये मकान हुआ करता था, कभी मुझसे रोशन,
बुझा हुआ सा चिराग़ हूं, तुम जलाओ मुझको ।

सिर्फ तल्ख़ मिज़ाज नहीं, हज़ार कमियां हैं मुझमें,
दाग़ ही दाग़ हैं दामन में, और ना दिखाओ मुझको ।

सब़ब फरह का हर कोई, मुझी को कहता है,
इश़्क का आग़ाज़ हूं, दिल में बसाओ मुझको ।

मशरूफ़ हूं बहुत फिर भी लम्हें, चंद फुर्सत के पास मेरे,
बिसरा हुआ नग़मा-ए-इश़्क, हो सके तो सुनाओ मुझको ।

है इल्तिज़ा अये ख्वाहिशों, कि ना फुसलाओ मुझको,
खुदा की खिदमत में हूं, कहीं और ना लगाओ मुझको ।

#रवीन्द्र

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *